पिंगलक के मंत्री करटक और उसकी धर्मपत्नी करटकी के जोर डालने पर वीतरागी लघुपतनक चूहे ने इस शर्त पर विवाह करना स्वीकार किया कि विवाह में कोई तड़क भड़क नहीं हो।
करटकी बोली–‘भला यह भी कोई बात हुई! विवाह जीवन में एक बार होता है, सो पूरे धूमधाम से होगा।’
इस पर लघुपतनक ने उदास होकर कहा–‘जैसी स्वामिनी की इच्छा किंतु मैं तो महाराज पिंगलक का क्षुद्र सेवक हूँ, मेरी हैसियत धूमधाम करने की नहीं है।’
करटकी बोली–‘तुम इसकी चिंता न करो, विवाह का सारा आयोजन मैं करूंगी।’
इस पर लघुपतनक ने मौन स्वीकृति दे दी। करटकी को तो मुँह–मांगी मुराद मिल गई। उसने चुलबुली चुहिया से लघुपतनक का विवाह सम्बन्ध निश्चित कर दिया और डेढ़ हजार निमंत्रण पत्र छपवाकर जंगल के महत्वपूर्ण पशु–पक्षियों और तालाब के मोटे मगरमच्छों को बांटने लगी। उधर चुलबुली चुहिया कि पिता ने भी डेढ़ हजार निमंत्रण बंटवाये।
लघुपतनक ने आपत्ति की–‘विवाह में इतने अतिथि मत बुलाओ।’
करटकी ने उसकी आपत्ति पुन: अनसुनी कर दी और कहा–‘विवाह जीवन में एक बार होता है।’
विवाह में पहनने के लिये दस हजार रुपये की अचकन सिलवाई गई तो लघुपतनक घिघियाया–‘अचकन नामक कपड़ा जीवन में केवल एक बार पहना जाता है और देखने में भी बुरा लगता है इसलिये कोट, पैण्ट और टाई धारण करूंगा।’ करटकी ने फिर उसकी बात अस्वीकार कर दी–‘अचकन तो तुम्हें पहननी पड़ेगी, विवाह जीवन में एक बार होता है।’
लघुपतनक को अचकन पहननी पड़ी। सारे बाराती सजधज कर आ गये। श्रीमती करटकी भी दूसरे मंत्रियों की पत्नियों की तरह खूब सजधज कर आई। उसने अपनी माँ के द्वारा दी गई महंगी ज्यूलरी और पूरे पंद्रह हजार की बनारसी साड़ी पहन रखी थी। जब बारात रवाना होने लगी तो करटकी ने लघुपतनक से कहा–‘चलो घोड़ी पर बैठो।’ लघुपतनक बोला–‘मैं साधारण चूहा होकर घोड़ी पर बैठता क्या अच्छा लगूंगा, पैदल ही चलते हैं।’
इस पर करटकी ने लघुपतनक को अपने पंजे में उठाकर घोड़ी पर बैठा दिया। जैसे ही बारात रवाना हुई तो कानफोडू। बाजे बजने लगे और पटाखे फूटने लगे। लघुपतनक मारे डर के घोड़ी से नीचे कूद गया और थर–थर कांपता हुआ बोला–‘मुझे छोड़ दो, मुझे विवाह नहीं करवाना है।’
इस पर करटकी ने उसे फिर से घोड़ी पर बैठा दिया–‘थोड़ी देर की ही तो बात है, कुछ देर सहन कर लो।’ बैण्ड बजने लगा और सारे पशु–पक्षी तथा मगरमच्छ झूम–झूमकर नाचने लगे। महाराज पिंगलक ने अपने मंत्रियों और अधिकारियों के साथ जमकर शराब पी और दूसरे पशु–पक्षियों की पत्नियों के साथ जमकर ठुमके लगाये। यह दृश्य देखकर लघुपतनक की आंखें शर्म से घोड़ी की पीठ पर जम गईं किंतु एक साधारण चूहा होने के कारण वह कर ही क्या सकता था!
आधी रात से कुछ पहले बारात चुलबुली चुहिया के पिता के दरवाजे पर पहुँची, अभी जयमाला पड़ ही रही थी कि किसी ने आकर बुरी खबर सुनाई, खाना खत्म हो गया। मंत्रिवर करटक और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती करटकी तुरंत चुलबुली चुहिया के पिता के पास जाकर बोले–‘तुम्हें जरा भी शर्म नहीं है, हमने कोई दहेज तो मांगा ही नहीं था केवल बारात को अच्छा खाना खिलाने की शर्त रखी थी। हम कौनसे रोज–रोज तुम्हारे दरवाजे पर आयेंगे!’
चुलबुली चुहिया का पिता बोला–‘मैंने तीन हजार पशु–पक्षियों के लिये खाना बनवाया था, अभी तो एक हजार ने ही खाया है, अवश्य ही हलवाइयों ने खाना चुराकर पार कर दिया है।’
इस पर हलवाई बिगड़कर बोले, हम पर क्यों झूठा आरोप लगाते हो! दो हजार घराती, एक हजार बैण्ड बाजे, टैण्ट, कैटरिंग, सिक्योरिटी और लाइटिंग वाले, हमारा पाँच सौ का स्टाफ, दो सौ किन्नर और एक हजार फोकटिये खाना खा चुके हैं, वो तो आपसे रोके नहीं गये। हम पर फालतू में बिगड़ रहे हो। हम तो खुद ही अभी भूखे हैं, हमारे खाने का प्रबंध तो करो। बरातियों का क्या है, ये तो घर जाकर भी खा लेंगे।’
हलवाईयों की यह बात सुनकर करटकी सिर पकड़ कर बैठ गईं। उसके साथ आये डेढ़ हजार बाराती तो अभी भूखे ही थे।
(दैनिक भास्कर, राग दरबारी 18 दिसम्बर 2009)