Monday, January 4, 2010

डेढ़ हजार बराती तो भूखे ही थे!

पिंगलक के मंत्री करटक और उसकी धर्मपत्नी करटकी के जोर डालने पर वीतरागी लघुपतनक चूहे ने इस शर्त पर विवाह करना स्वीकार किया कि विवाह में कोई तड़क भड़क नहीं हो।
करटकी बोली–‘भला यह भी कोई बात हुई! विवाह जीवन में एक बार होता है, सो पूरे धूमधाम से होगा।’
इस पर लघुपतनक ने उदास होकर कहा–‘जैसी स्वामिनी की इच्छा किंतु मैं तो महाराज पिंगलक का क्षुद्र सेवक हूँ, मेरी हैसियत धूमधाम करने की नहीं है।’
करटकी बोली–‘तुम इसकी चिंता न करो, विवाह का सारा आयोजन मैं करूंगी।’


इस पर लघुपतनक ने मौन स्वीकृति दे दी। करटकी को तो मुँह–मांगी मुराद मिल गई। उसने चुलबुली चुहिया से लघुपतनक का विवाह सम्बन्ध निश्चित कर दिया और डेढ़ हजार निमंत्रण पत्र छपवाकर जंगल के महत्वपूर्ण पशु–पक्षियों और तालाब के मोटे मगरमच्छों को बांटने लगी। उधर चुलबुली चुहिया कि पिता ने भी डेढ़ हजार निमंत्रण बंटवाये।
लघुपतनक ने आपत्ति की–‘विवाह में इतने अतिथि मत बुलाओ।’
करटकी ने उसकी आपत्ति पुन: अनसुनी कर दी और कहा–‘विवाह जीवन में एक बार होता है।’


विवाह में पहनने के लिये दस हजार रुपये की अचकन सिलवाई गई तो लघुपतनक घिघियाया–‘अचकन नामक कपड़ा जीवन में केवल एक बार पहना जाता है और देखने में भी बुरा लगता है इसलिये कोट, पैण्ट और टाई धारण करूंगा।’ करटकी ने फिर उसकी बात अस्वीकार कर दी–‘अचकन तो तुम्हें पहननी पड़ेगी, विवाह जीवन में एक बार होता है।’


लघुपतनक को अचकन पहननी पड़ी। सारे बाराती सजधज कर आ गये। श्रीमती करटकी भी दूसरे मंत्रियों की पत्नियों की तरह खूब सजधज कर आई। उसने अपनी माँ के द्वारा दी गई महंगी ज्यूलरी और पूरे पंद्रह हजार की बनारसी साड़ी पहन रखी थी। जब बारात रवाना होने लगी तो करटकी ने लघुपतनक से कहा–‘चलो घोड़ी पर बैठो।’ लघुपतनक बोला–‘मैं साधारण चूहा होकर घोड़ी पर बैठता क्या अच्छा लगूंगा, पैदल ही चलते हैं।’


इस पर करटकी ने लघुपतनक को अपने पंजे में उठाकर घोड़ी पर बैठा दिया। जैसे ही बारात रवाना हुई तो कानफोडू। बाजे बजने लगे और पटाखे फूटने लगे। लघुपतनक मारे डर के घोड़ी से नीचे कूद गया और थर–थर कांपता हुआ बोला–‘मुझे छोड़ दो, मुझे विवाह नहीं करवाना है।’


इस पर करटकी ने उसे फिर से घोड़ी पर बैठा दिया–‘थोड़ी देर की ही तो बात है, कुछ देर सहन कर लो।’ बैण्ड बजने लगा और सारे पशु–पक्षी तथा मगरमच्छ झूम–झूमकर नाचने लगे। महाराज पिंगलक ने अपने मंत्रियों और अधिकारियों के साथ जमकर शराब पी और दूसरे पशु–पक्षियों की पत्नियों के साथ जमकर ठुमके लगाये। यह दृश्य देखकर लघुपतनक की आंखें शर्म से घोड़ी की पीठ पर जम गईं किंतु एक साधारण चूहा होने के कारण वह कर ही क्या सकता था!


आधी रात से कुछ पहले बारात चुलबुली चुहिया के पिता के दरवाजे पर पहुँची, अभी जयमाला पड़ ही रही थी कि किसी ने आकर बुरी खबर सुनाई, खाना खत्म हो गया। मंत्रिवर करटक और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती करटकी तुरंत चुलबुली चुहिया के पिता के पास जाकर बोले–‘तुम्हें जरा भी शर्म नहीं है, हमने कोई दहेज तो मांगा ही नहीं था केवल बारात को अच्छा खाना खिलाने की शर्त रखी थी। हम कौनसे रोज–रोज तुम्हारे दरवाजे पर आयेंगे!’


चुलबुली चुहिया का पिता बोला–‘मैंने तीन हजार पशु–पक्षियों के लिये खाना बनवाया था, अभी तो एक हजार ने ही खाया है, अवश्य ही हलवाइयों ने खाना चुराकर पार कर दिया है।’


इस पर हलवाई बिगड़कर बोले, हम पर क्यों झूठा आरोप लगाते हो! दो हजार घराती, एक हजार बैण्ड बाजे, टैण्ट, कैटरिंग, सिक्योरिटी और लाइटिंग वाले, हमारा पाँच सौ का स्टाफ, दो सौ किन्नर और एक हजार फोकटिये खाना खा चुके हैं, वो तो आपसे रोके नहीं गये। हम पर फालतू में बिगड़ रहे हो। हम तो खुद ही अभी भूखे हैं, हमारे खाने का प्रबंध तो करो। बरातियों का क्या है, ये तो घर जाकर भी खा लेंगे।’
हलवाईयों की यह बात सुनकर करटकी सिर पकड़ कर बैठ गईं। उसके साथ आये डेढ़ हजार बाराती तो अभी भूखे ही थे।

(दैनिक भास्कर, राग दरबारी 18 दिसम्बर 2009)

Friday, January 1, 2010

हाय! मैं शादी में कब जाऊँगी!

पण्डित विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र के सारे पात्रों को कंवारा ही रहने दिया। बरसों तक वे सब के सब एक कहानी से दूसरी कहानी में कंवारे घूमते रहे। इससे जंगल की जिंदगी बहुत बोरियत भरी हो गई। एक दिन मंत्री करटक ने महाराज पिंगलक को सुझाव दिया–‘महाराज! पण्डित विष्णु शर्मा तो ठहरे धर्मी–कर्मी वीतरागी। उन्होंने पंचतंत्र के पशुओं का विवाह नहीं करवाया। इस कारण पंचतंत्र के सारे पात्र बोरियत भरा जीवन जी रहे हैं। इससे तो अच्छा है कि हम सब विवाह कर लें। जीवन में कुछ तो रौनक होगी।’


–‘हाँ महाराज! मंत्रिवर ठीक कहते हैं।’ दमनक और संजीवक ने करटक के सुझाव का समर्थन किया।
पिंगलक को भी बात जंच गई। वह स्वयं भी बरसों से इस पेड़ के नीचे अकेला सोता हुआ बोर हो गया था। सो बात तय हो गई और प्रोटोकॉल के अनुसार सबसे पहले महाराज पिंगलक की ही शादी हुई। बड़ी धूमधाम मची। दीर्घमुख, हिरण्यक और लघु पतनक आदि पशु–पक्षी बैण्ड बाजे की धुन पर खूब नाचे।
जब ..... गर्दभ ने ‘आई एम ए डिस्को डांसर’ की धुन पर डिस्को किया तो देखने वालों के आनंद का पार नहीं रहा।


महाराज पिंगलक के विवाह की दावत में खरगोशों के लिये गाजरों से लेकर चूहों तक के लिये अनाज के दाने और राजहंसों के लिये दूध परोसा गया। लोमडि़यों, गीदड़ों, गधों, बगुलों और कछुओं के लिये भी मनपसंद व्यंजन परोसे गये। पण्डित विष्णु शर्मा तो अब संसार में नहीं रहे थे सो चम्पू हाथी को पुरोहित बनाया गया। उसके कण्ठ से निकले पंचतंत्र के मंत्रों से जंगल गंूज गया। पशु–पक्षियों को को इस विवाह में आनंद आ गया।


इसके बाद तो जंगल में शादियों की झड़ी लग गई। संजीवक, करटक, दमनक, हिरण्यक, चित्रवर्ण, मेघवर्ण सबकी शादियां हो गईं। अब केवल लघुपतनक चूहा ही बचा था जिसने ने विवाह करने से मना कर दिया। एक दिन करटक की नवोढ़ा पत्नी करटकी अपने पति से बोली–‘स्वामि! लघुपतनक चूहे का विवाह भी करवाईये!’


करटक उस समय दरबार में जाने की तैयारी कर रहा था, अपनी मूंछों पर कंघा फेरता हुआ बोला–‘लघुपतनक ने विवाह करने से इन्कार कर दिया है।’
–‘आप प्रयास तो कीजिये।’ करटकी ने करटक के गले की टाई सीधी करते हुए कहा।
–‘जब वह विवाह करना ही नहीं चाहता तो जबर्दस्ती क्यों करें? वह तो शुरू से ही साधु स्वभाव का है।’
–‘लेकिन आपको उसका विवाह तो करवाना ही होगा।’ करटकी ने जिद्द पकड़ ली।’
–‘लेकिन क्यों?’
–‘आप स्वयं तो कुछ समझते नहीं हैं, जैसा मैं कहती हूँ वैसा करो तो सही डार्लिंग।’
–‘पता भी तो चले आखिर क्यों?’
–‘कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें केवल स्त्रियां समझ सकती हैं।’
–‘मैं भी तो सुनूं ऐसी कौनसी बातें हैं जिन्हें मैं नहीं समझता, केवल तुम समझती हो।’ करटक ने भी जिद्द पकड़ ली।
–‘स्वामि! इस जंगल में अब तक सबसे अंत में अपना विवाह हुआ था। हमारे विवाह में सारे जानवरों की पत्नियाँ महंगी साडि़याँ, व्हाइट गोल्ड की अंगूठियाँ और बीस–बीस लाख के हीरों के हार पहनकर आईं थीं। अपनी ज्यूलरी दिखाने के लिये उन्होंने तो भर सर्दी में लो नेक तथा डीप कट बैक ब्लाउज पहने थे और रात भर सर्दी में सिकुड़ी थीं। मेरी मम्मी ने भी मुझे कीमती साडि़याँ और ज्यूलरी दी है। मैं कैसे सबको दिखाऊँ? जब लघुपतनक की शादी होगी, तभी तो मैं अपनी साडि़याँ और ज्यूलरी पहन कर सबको दिखा सकूंगी। इसलिये आपको लघुपतनक का विवाह करवाना ही होगा। आपको मेरी कसम। करवाओगे ना! हाय! मैं किसी की शादी में कब जाऊंगी!’ इतना कहने के पश्चात् एक लम्बी सांस भरकर करटकी उदास होकर एक ओर को बैठ गई। करटकी की उदासी देखकर करटक भी उदास हो गया। उसके पास हाँ करने के अतिरिक्त चारा भी क्या था!