Friday, January 1, 2010

हाय! मैं शादी में कब जाऊँगी!

पण्डित विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र के सारे पात्रों को कंवारा ही रहने दिया। बरसों तक वे सब के सब एक कहानी से दूसरी कहानी में कंवारे घूमते रहे। इससे जंगल की जिंदगी बहुत बोरियत भरी हो गई। एक दिन मंत्री करटक ने महाराज पिंगलक को सुझाव दिया–‘महाराज! पण्डित विष्णु शर्मा तो ठहरे धर्मी–कर्मी वीतरागी। उन्होंने पंचतंत्र के पशुओं का विवाह नहीं करवाया। इस कारण पंचतंत्र के सारे पात्र बोरियत भरा जीवन जी रहे हैं। इससे तो अच्छा है कि हम सब विवाह कर लें। जीवन में कुछ तो रौनक होगी।’


–‘हाँ महाराज! मंत्रिवर ठीक कहते हैं।’ दमनक और संजीवक ने करटक के सुझाव का समर्थन किया।
पिंगलक को भी बात जंच गई। वह स्वयं भी बरसों से इस पेड़ के नीचे अकेला सोता हुआ बोर हो गया था। सो बात तय हो गई और प्रोटोकॉल के अनुसार सबसे पहले महाराज पिंगलक की ही शादी हुई। बड़ी धूमधाम मची। दीर्घमुख, हिरण्यक और लघु पतनक आदि पशु–पक्षी बैण्ड बाजे की धुन पर खूब नाचे।
जब ..... गर्दभ ने ‘आई एम ए डिस्को डांसर’ की धुन पर डिस्को किया तो देखने वालों के आनंद का पार नहीं रहा।


महाराज पिंगलक के विवाह की दावत में खरगोशों के लिये गाजरों से लेकर चूहों तक के लिये अनाज के दाने और राजहंसों के लिये दूध परोसा गया। लोमडि़यों, गीदड़ों, गधों, बगुलों और कछुओं के लिये भी मनपसंद व्यंजन परोसे गये। पण्डित विष्णु शर्मा तो अब संसार में नहीं रहे थे सो चम्पू हाथी को पुरोहित बनाया गया। उसके कण्ठ से निकले पंचतंत्र के मंत्रों से जंगल गंूज गया। पशु–पक्षियों को को इस विवाह में आनंद आ गया।


इसके बाद तो जंगल में शादियों की झड़ी लग गई। संजीवक, करटक, दमनक, हिरण्यक, चित्रवर्ण, मेघवर्ण सबकी शादियां हो गईं। अब केवल लघुपतनक चूहा ही बचा था जिसने ने विवाह करने से मना कर दिया। एक दिन करटक की नवोढ़ा पत्नी करटकी अपने पति से बोली–‘स्वामि! लघुपतनक चूहे का विवाह भी करवाईये!’


करटक उस समय दरबार में जाने की तैयारी कर रहा था, अपनी मूंछों पर कंघा फेरता हुआ बोला–‘लघुपतनक ने विवाह करने से इन्कार कर दिया है।’
–‘आप प्रयास तो कीजिये।’ करटकी ने करटक के गले की टाई सीधी करते हुए कहा।
–‘जब वह विवाह करना ही नहीं चाहता तो जबर्दस्ती क्यों करें? वह तो शुरू से ही साधु स्वभाव का है।’
–‘लेकिन आपको उसका विवाह तो करवाना ही होगा।’ करटकी ने जिद्द पकड़ ली।’
–‘लेकिन क्यों?’
–‘आप स्वयं तो कुछ समझते नहीं हैं, जैसा मैं कहती हूँ वैसा करो तो सही डार्लिंग।’
–‘पता भी तो चले आखिर क्यों?’
–‘कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें केवल स्त्रियां समझ सकती हैं।’
–‘मैं भी तो सुनूं ऐसी कौनसी बातें हैं जिन्हें मैं नहीं समझता, केवल तुम समझती हो।’ करटक ने भी जिद्द पकड़ ली।
–‘स्वामि! इस जंगल में अब तक सबसे अंत में अपना विवाह हुआ था। हमारे विवाह में सारे जानवरों की पत्नियाँ महंगी साडि़याँ, व्हाइट गोल्ड की अंगूठियाँ और बीस–बीस लाख के हीरों के हार पहनकर आईं थीं। अपनी ज्यूलरी दिखाने के लिये उन्होंने तो भर सर्दी में लो नेक तथा डीप कट बैक ब्लाउज पहने थे और रात भर सर्दी में सिकुड़ी थीं। मेरी मम्मी ने भी मुझे कीमती साडि़याँ और ज्यूलरी दी है। मैं कैसे सबको दिखाऊँ? जब लघुपतनक की शादी होगी, तभी तो मैं अपनी साडि़याँ और ज्यूलरी पहन कर सबको दिखा सकूंगी। इसलिये आपको लघुपतनक का विवाह करवाना ही होगा। आपको मेरी कसम। करवाओगे ना! हाय! मैं किसी की शादी में कब जाऊंगी!’ इतना कहने के पश्चात् एक लम्बी सांस भरकर करटकी उदास होकर एक ओर को बैठ गई। करटकी की उदासी देखकर करटक भी उदास हो गया। उसके पास हाँ करने के अतिरिक्त चारा भी क्या था!

6 comments:

  1. नव वर्ष की शुभकामनाएं

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  2. बहुत रोचक . नववर्ष की शुभकामना और बधाई.

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  3. बहुत रोचक पोस्ट है।बधाई।
    नये साल की हार्दिक बधाई।

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  4. बहुत रोचक रचना।
    आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  5. वाह पढ के मजा आया , आभार और शुभकामना भविष्य के लिए


    इस नए साल पर आपको, आपके परिवार एवं ब्लोग परिवार के हर सदस्य को बहुत बहुत बधाई और शभकामनाएं । इश्वर करे इस वर्ष सबके सारे सपने पूरे हों और हमारा हिंदी ब्लोग जगत नई ऊंचाईयों को छुए ॥

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  6. जल्दी से शादी करवाइए। हमको भी न्यौता भेजवाइए। इस शादी और पंचतंत्र के इस आधुनिक संस्करण में ब्लॉगरों को भी पात्र बनाइए तो बात बन जाए:
    चश्मा लगाए समीर जी
    भारी कद के अरविन्द जी
    अफसरी ठाठ लिए ज्ञान जी
    अमेरिका से स्मार्ट जी
    रिपोर्टिंग के लिए सिद्धार्थ जी
    गजल गोष्ठी की सरताजी के लिए अदा जी...
    हम जैसे लंठ श्रोताओं में और आम बारातियों की भीड़ में इजाफा करते..क्या दिब्य शमाँ बँधेगा!

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