Tuesday, December 22, 2009

जय हो! जय हो! गाइये!

करटक घिसटता हुआ जंगल के राजा पिंगलक के समक्ष आकर बैठ गया, ढंग से नमस्ते भी नहीं की और पूंछ भी नहीं हिलाई। अपने मंत्री की पीली आंखों में मरी हुई दृष्टि देखकर पिंगलक हैरान हुआ। किसी तरह मूंछों पर ताव देकर रुखाई से बोला– ‘कैसे हैं मंत्रिवर !’
करटक बोला– ‘महाराज! आपके राज्य में किसी मंत्री को जैसा होना चाहिये, मैं वैसा ही हूँ।’
पिंगलक कन्फ्यूज हो गया, बोला– ‘क्या मतलब?’
–‘मतलब बहुत साफ है राजन्! आपके राज्य में गधे की लीद खा–खाकर मंत्रियों की क्या हालत हो सकती है, वैसी ही हालत मेरी है।’
–‘तो बेवकूफ! ढंग की चीज क्यों नहीं खाता, गधे की लीद क्यों खाता है?’ पिंगलक को अपने मंत्री की बेवकूफी पर सचमुच गुस्सा आ गया।
–‘सही कहते हैं महाराज! पर आपके राज्य में हर ओर धनिये में गधे की लीद, मिचों‍र् में रतनजोत के बीज, आटे में चूना, दूध में वाशिंग पाउडर, घी में पशुओं की चर्बी और मिठाई में घिया पत्थर बिक रहा है। अच्छी चीज कहाँ से खाऊँ? मुझे तो वैसे भी इतनी महंगी चीजें खाने की आदत नहीं। मैंने तो अचार से रोटी खाने की कोशिश की किंतु आपके राज्य में हर स्थान पर सड़ा हुआ अचार और फफूंदी लगी हुई चटनी बिक रही है जिन्हें खाकर मैं तो और भी ज्यादा बीमार पड़ गया।’ पीड़ा से कराहते हुए करटक बोला।
–‘आप तो मंत्री हैं। हम आपको हर महीने बहुत सारे रुपये देते हैं, मुद्रा फीती की दर भी शून्य से नीचे चल रही है। फिर आप ऐसी घटिया चीजें क्यों खाते हैं? महंगी चीजें खरीद कर खाईये।’
–‘गुस्ताखी माफ हो महाराज। आपके दिये हुए रुपये अब अपने जंगल के बाजार में तो चलते नहीं किसी तरह छीन झपट कर ही पेट भरना पड़ता है।’
–‘क्यों? रुपये क्यों नहीं चलते ?’
–‘वे भी नकली हैं महाराज!’
–‘मुंह संभाल कर बात करो गीदड़ राज! राजा के रुपयों को नकली बता रहे हो!’ पिंगलक ने दहाड़ने की कोशिश की किंतु मुंह से भौं–भौं निकल कर रह गई।
–‘ज्यादा दहाड़ने की कोशिश मत कीजिये महाराज! किसी ने सुन लिया तो मुश्किल हो जायेगी।’
–‘मुश्किल क्यों हो जायेगी?’
–‘अब ये भी मैं बताऊँ कि आप दहाड़ते नहीं हैं, भौंकते हैं! धनिये की लीद खाकर और वाशिंग पाउडर का दूध पीकर आप और कर भी क्या सकते हैं!’ इस बार करटक को क्रोध आ गया।
जंगल का राजा पिंगलक हैरान रह गया। कई दिनों से वह अनुभव कर रहा था कि उसकी दहाड़ में परिवर्तन आता जा रहा है। हो सकता है इसीलिये आजकल जंगल के जानवर मेरी उतनी इज्जत नहीं करते, जितनी पहले करते थे, उसने सोचा।
–‘क्या सोच रहे हैं महाराज?’ करटक ने पूछा।
–‘मैं सोच रहा हूँ कि जब तुम गधे की लीद, सड़ा हुआ अचार और यूरिया मिला घी खा–खा कर इतने बीमार हो गये हो तो अपने भाई दमनक से अपना उपचार क्यों नहीं करवाते।’
–‘क्या खाक उपचार करवाऊँ। आपको कुछ मालूम भी है, आपके राज्य में दवाओं में लोहे की कीलें निकलती हैं और इंजेक्शनों में पानी भरा हुआ है।’
–‘यदि हमारे राज्य में एक मंत्री की ऐसी हालत है तो फिर सामान्य जानवरों पर क्या बीत रही होगी?’ पिंगलक ने उदास होकर पूछा।
–‘आपको उसकी कहाँ फिक्र है? आप तो वोट बैंक को फलता– फूलता देखकर सुबह से शाम तक जय हो! जय हो! गाइये। फिर चाहे कोई जिये या मरे, गधे की लीद खाये या यूरिया से बना घी खाये।’ करटक ने पेट दर्द से कराहते हुए कहा और महाराज को बिना प्रणाम किये उठकर चल दिया।

1 comment:

  1. फीती होता है कि स्फीति ?
    ठीक से लिखो, प्रोफाइल तो बढ़िया है.
    वैसे बात में दम भी है.

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