Tuesday, December 29, 2009

डॉक्टर भेडि़या ने मंत्री की किडनी चुरा ली!

करटक आज बहुत दिनों बाद महाराजा पिंगलक से मिलने आया था लेकिन धरती पर बैठने की बजाय ऊँचे पेड़ की शाखा पर बैठकर झूले खाने लगा। पिंगलक ने हैरान होकर पूछा– ‘‘मंत्रिवर! क्या हो रहा है?’’
–‘‘कुछ नहीं महाराज! आपको प्रणाम करने आया हूँ।’’
–‘‘सो तो ठीक किंतु दरबारी कायदा तोड़कर पेड़ पर क्यों जा बैठे हैं?’’
–‘‘जबसे हार्ट का आॅपरेशन करवाया है तब से मेरा जी पेड़ों पर चढ़ने, उछलकूद करने और लोगों के हाथ से खाने की चीजें छीनकर भाग जाने को करता है।’’
–‘‘ऐसा क्यों मंत्रिवर!’’
–‘‘क्या बताऊँ महाराज। आॅपरेशन में छ: बोतल खून चढ़ा था। कम्पाउण्डर बता रहा था कि वह खून नकली था।’’
–‘‘नकली मतलब?’’
–‘‘वह गीदड़ का खून नहीं था, किसी बंदर का खून था।’’
–‘‘तो क्या बंदर का खून भी गीदड़ों को चढ़ जाता है?’’
–‘‘आपके राज्य में जो हो जाये सो कम है महाराज!’’
–‘‘आज आप गले में चेन पहनकर नहीं आये?’’ पिंगलक ने विषय बदलने की चेष्टा की।
–‘‘घर से तो चेन पहनकर ही निकला था किंतु रास्ते में किसी बदमाश ने झपट ली। आपके राज्य में जो हो जाये, सो थोड़ा है।’’ करटक पेट पकड़ कर दर्द से कराहा।
–‘‘क्या हुआ मंत्रिवर!’’ पिंगलक ने किसी तरह साहस जुटा कर प्रश्न किया। पता नहीं इस मुँहफट मंत्री से क्या जवाब सुनने को मिले।
–‘‘होना क्या था, जब मैं हार्ट का आॅपरेशन करवाने गया तो आपके राज्य के डॉक्टर भेडि़या ने मेरी एक किडनी चुरा ली।’’
–‘‘किडनी चुरा ली!’’ पिंगलक ने हैरान होकर पूछा।
–‘‘डॉक्टर भेडि़या तो एक आँख भी चुराने की बात कर रहा था किंतु वह तो भला हो गिरगिट कम्पाउण्डर को जो उसने डॉक्टर भेडि़या को बता दिया कि मैं साधारण गीदड़ नहीं, इस जंगल के महाराज पिंगलक का मंत्री हूँ। नहीं तो आज मैं पूरी दुनिया को एक आँख से देख रहा होता।’’
–‘‘तो आप खुश हैं ना कि अब भी राज्य के कर्मचारी हमारा रुतबा मानते हैं और मंत्रियों की आँख चुराने से डरते हैं!’’
–‘‘हाँ महाराज! मैं खुश हूँ कि जंगल के सारे कर्मचारी आपका रुतबा मानते हैं इसलिये वे केवल किडनी चुराते हैं, आँख नहीं चुराते।’’
–‘‘आज बहुत दिनों बाद मुझे आपके मुँह से प्रशंसा सुनने को मिली है।’’ पिंगलक ने प्रसन्न होकर कहा।
–‘‘अब ज्यादा अपने मुँह मिू मत बनिये, जरा इस फाइल पर गौर फरमाइये।’’ करटक ने पेड़ से ही एक फाइल पिंगलक की ओर उछाली।’’
–‘‘किसकी फाइल है ये?’’ पिंगलक ने भयभीत आँखों से फाइल की ओर देखते हुए सवाल किया।
–‘‘आपके मित्र संजीवक ने विदेशी बैंकों में जो काला धन जमा करवा रखा है, इस फाइल में उसी का हिसाब किताब है।’’ करटक ने अपने दर्द पर काबू पाते हुए कहा।
–‘‘हमें क्यों पढ़वा रहे हैं यह हिसाब–किताब? यह तो विदेश मंत्री को दीजिये ले जाकर।’’ पिंगलक ने नाराज होकर कहा।
–‘‘विदेश मंत्री कह रहे हैं कि यह मामला वित्त मंत्रालय का है।’’
–‘‘तो वित्त मंत्रीजी को दीजिये।’’
–‘‘वित्त मंत्रीजी कह रहे हैं कि यह मामला नंदन वन की खुफिया पुलिस का है।’’
–‘‘तो भाई खुफिया पुलिस को दीजिये।’’
–‘‘ लेकिन महाराज खुफिया पुलिस को तो आपने पहले से ही भंग कर दिया है, किसे दूँ यह फाइल?’’
–‘‘तुम भी यार, बड़े अजीब मंत्री हो! हर बार कोई न कोई समस्या लेकर आ जाते हो। मंत्री का काम राजा की समस्याएं कम करने का है कि बढ़ाने का? जिसे मर्जी आये, उसे दे दो यह फाइल।’’ यह कहकर पिंगलक ने लम्बी जंभाई ली और आँखें बंद करके सो गया।

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