Wednesday, December 30, 2009

बिक गया नंदनवन का बॉर्डर!

पिंगलक आँखें बंद करके सो चुका था और करटक विस्फारित नेत्रों से उसे देख रहा था। फाइल अब भी उसके हाथ में थी जिसमें महाराज पिंगलक के मंत्री संजीवक के विदेशी खातों में जमा धन का हिसाब लिखा था। पिंगलक समझ चुका था कि महाराज इस पर कुछ भी कार्यवाही नहीं करेंगे। इसलिये वह अपने कार्यालय से दूसरी फाइल लेने चल दिया। जब लौटा, तब भी पिंगलक सोया पड़ा था। करटक उसके जागने की प्रतीक्षा में वहीं बैठ गया। जब चिडि़याएं घोंसलों में लौटने लगीं तो उनके शोर से पिंगलक की आँख खुली।

–‘क्या है?’ पिंगलक उसे देखते ही खीझ गया।
–‘महाराज वो फाइल....।’
–‘आपसे कह तो दिया कि चाहे जिसे दे दो यह फाइल।’
–‘पर महाराज, मैं तो दूसरी फाइल की बात कर रहा हूँ।’
–‘दूसरी कौन सी?’
–‘महाराज, कुछ अज्ञात लोगों ने नंदनवन के बॉर्डर की काफी जमीनें बेच दी हैं।’
–‘तो?’
–‘महाराज बॉर्डर की जमीनों का बेचा जाना खतरनाक है। हो सकता है भेडि़यालैण्ड वालों ने हमारा बॉर्डर खरीद लिया हो।’
–‘तो इसमें डरने की क्या बात है, पैसा खराब हुआ तो दुश्मन का हुआ।’
–‘दुश्मन का पैसा नहीं महाराज, हमारा बॉर्डर खराब हुआ।’
–‘अरे यार तुम कुछ समझते नहीं हो, किस ने मंत्री बना दिया तुम्हें? बॉर्डर तो पिछले साल ही हमने संजीवक के हाथों बिकवाकर उसका पैसा विदेशी बैंकों में जमा करवा दिया था। हमें मालूम था कि एक दिन दुश्मन ऐसी हरकत करेगा।’ पिंगलक ने मुस्कुराकर कहा।

–‘आप भी गजब करते हैं, अपने ही देश का बॉर्डर बेचकर आपने पैसा विदेशी बैंकों में जमा करवा दिया!’ –‘अरे भई बॉर्डर तो वैसे भी बिकना ही था, चाहे हम बेचें या फिर दुश्मन। अब कम से कम पैसा तो विदेशी बैंकों में सुरक्षित रहेगा।’
–‘तो इसीलिये आप संजीवक के विदेशी बैंक खातों की जांच नहीं करवा रहे?’
–‘बिल्कुल सही। आप क्या समझते हैं, हम यहाँ पेड़ के नीचे सारे दिन सोते रहते हैं? अरे हमने तो नंदनवन का बहुत कुछ बेचकर विदेशी बैंकों में जमा करवा दिया है ताकि भेडि़यालैण्ड वाले यहाँ से कुछ चुराकर न ले जा सकें। जरा सोचिये, जब उन्हें पता चलेगा कि हमारे जिस बॉर्डर की रजिस्ट्री उन्होंने करवाई, वह तो पहले ही बिका हुआ है तो कितने हैरान परेशान होंगे वे।’ पिंगलक ने गद्गद् होकर कहा।
–‘पिछले साल आपने जो तीर कमान खरीदे थे....।’
–‘.....उनकी भी फॉरेंसिक रिपोर्ट आ गई है,यही कहना चाहते हैं?’
–‘हाँ महाराज! वे सबके सब दीमक खाई लकड़ी से बने हुए हैं।’
–‘तो आप चिंतित क्यों हैं?’
–‘महाराज नंदनवन के पशु–पक्षी हमें भ्रष्टाचारी कहेंगे।’
–‘कोई कुछ नहीं कहेगा, तुम तो यार वैसे ही चिंतित होते रहते हो। तुम्हें पता है इस जंगल में गाजरें सौ रुपये किलो हो गईं और मटर की फलियाँ अस्सी रुपये किलो बिक रही हैं। फिर भी हर घौंसले, हर बिल और हर मांद में गाजरें और मटर की फलियाँ खाई जा रही हैं। कहाँ से आ रही हैं वे?’
–‘कहाँ से आ रही हैं महाराज?’
–‘अरे सब के सब भ्रष्टाचारी हैं। नहीं तो कोई पशु–पक्षी गाजरें और मटरें खा सकता था क्या?’
–‘बात तो आप सही कह रहे हैं किंतु......।’

–‘अरे छोड़ो तुम्हारी किंतु परंतु को यदि किसी पशु–पक्षी ने जरा भी चीं चपड़ की तो सौ रुपये किलो की गाजर और अस्सी रुपये किलो की मटर खाने के जुर्म में जेल में डाल दूंगा।’ पिंगलक ने जोर से अंगड़ाई ली और जंगल पानी के लिये चल दिया।

1 comment:

  1. एक अच्छी रचना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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